Gudi Padwa 2022 : गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाने की तिथि,मुहूर्त, विधि , गुड़ी पड़वा से जुड़ी पौराणिक कथा, गुड़ी पड़वा का क्या महत्व है जाने इस आर्टिकल में।
हम सभी लोग नववर्ष की शुरुआत का पहला दिन काफी उत्साह एवं आनंद के साथ मनाते हैं । पूरे भारतवर्ष में नव वर्ष का दिन धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा उत्सव महाराष्ट्र के लोगों द्वारा नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में यह पर्व काफी हर्ष एवं धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन कई जगहों पर जुलूस भी निकलते हैं। गुड़ी पड़वा के कुछ दिनों पहले से ही लोग इसके तैयारियों में जुट जाते हैं और कई लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं एवं उसे अच्छी तरह से सजाते हैं। वह अपने घर को सजाने के लिए आम के पत्ते और फूलों आदि का उपयोग करते हैं एवं गुड़ी पड़वा के दिन ही उनके घर के आंगन में सुंदर-सुंदर रंगोलियां बनाई जाती है।
गुड़ी पड़वा के दिन सभी लोग नए नए कपड़े पहनते हैं एवं सभी के घर पर विशेष प्रकार के पकवान भी बनाए जाते हैं। गुड़ी पड़वा त्यौहार के दिन शरीर पर तेल लगाकर प्रातः काल स्नान करने की परंपरा निभाई जाती है। इसके अलावा इस दिन गुड़ी फहराई जाता है। उसे आम के पत्ते एवं फूलों से काफी सुंदर ढंग से सजाया जाता है एवं गुड़ी के चारों तरफ सुंदर सुंदर रंगोली बनाई जाती है। इस दिन भगवान श्री विष्णु, श्री ब्रह्मा एवं अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना की जाती है। इसके अलावा घर परिवार की सुख-समृद्धि एवं सुरक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना की जाती हैं।

गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाने की तिथि
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाता है। Gudi padwa 2022 की बात करें तो इस वर्ष गुड़ी पड़वा का त्यौहार 2 अप्रैल को शनिवार के दिन मनाया जाएगा।
Gudi padwa 2022 का मुहूर्त
Gudi padwa 2022 के अंतर्गत बता दें कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा होती है, उसी दिन से नव संवत्सर शुरू हो जाता है। यदि प्रतिपदा दो दिन सूर्योदय के समय पड़ रही है, तो पहले दिन ही गुड़ी पड़वा का त्यौहार आ जाता है। ठीक वहीं दूसरी तरफ यदि सूर्योदय के समय किसी भी दिन प्रतिपदा न हो, तो नव-वर्ष उस दिन मनाया जाता है, जिस दिन प्रतिपदा का आरंभ और अन्त होता है।
गुड़ी पड़वा की पौराणिक कथा
गुड़ी पड़वा का त्यौहार दक्षिण भारत में काफी लोकप्रिय है, जो बेहद ही शानदार तरीके से यहां मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सतयुग में भारत के दक्षिण में राजा बाली का शासन हुआ करता था। जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था तब उनकी तलाश करते हुए भगवान श्री राम दक्षिण भारत पहुंच गए थे जहां पर उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई थी। वहां पर सुग्रीव ने बाली के कुशासन से श्री राम को अवगत करवाया एवं उनकी सहायता करने में अपनी असमर्थता जताई। तभी भगवान श्रीराम ने बाली का वध करके दक्षिण भारत के लोगों को बाली के आतंक से आजाद करवाया था। लोगों की यह मान्यता है कि वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का था। इसी वजह से इस दिन विजय पताका फहराई जाती है एवं गुड़ी पड़वा का उत्सव मनाया जाता है।
एक और कथा के अनुसार शालीवाहन ने मिट्टी की सेनाएं तैयार करके उनमें प्राण फूंक दिए थे एवं उन्हीं के बदौलत अपने दुश्मनों को पराजित किया था। इसी वजह से इस दिन को शालिवाहन शक का आरंभ भी कहा जाता है। लोग अपने घरों को आम के पत्तों एवं फूलों से सजाते हैं। इस पर्व को महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में काफी धूमधाम से लोग जुलूस निकालकर त्यौहार मनाते हैं।
गुड़ी पड़वा मनाने की विधि
नए साल के प्रारंभ पर गुड़ी पड़वा के दिन भगवान की पूजा करनी चाहिए एवं इस दिन मां दुर्गा की आरती की जाती है। सभी लोग अपने घरों को ध्वज पताका , तोरण , बदन बार एवं फूलों से सजाते हैं एवं धूप , अगरबत्ती आदि से घरों को सुगंधित करते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन पूरे दिन भजन कीर्तन के शुभ कार्यक्रम चलते हैं। इस दिन कलश स्थापना होती है एवं नए मिट्टी के बर्तन में जौ बो कर पूजा स्थान में रखा जाता है।
गुड़ी पड़वा के त्यौहार पर स्वास्थ्य को अच्छा बनाने के लिए नीम की कोंपलों के साथ मिश्री मिलाकर खाने का विधान है। ऐसा करने से रक्त संबंधित बीमारी समाप्त हो जाती है।
सभी लोग जीव मात्र एवं प्रकृति के लिए भगवान से मंगल कामना करते हैं। इस दिन नीम की पत्तियां खाई जाती है एवं दूसरों को भी खिलाई जाती है। इसके अलावा इस दिन ब्राह्मणों की अर्चना करके लोकहित में प्याऊ स्थापित करने की परंपरा भी है। ब्राह्मणों के मुख से इस दिन नव वर्ष के पंचांग एवं भविष्यफल भी गुड़ी पड़वा के दिन सुने जाते हैं। इसी दिन से रामायण एवं सप्तशती के नौ दिवसीय पाठ को आरंभ किया जाता है। इसके अलावा इसी दिन से कटुता का भाव मिटा कर मन में क्षमता का भाव स्थापित करने का संकल्प लिया जाता है।
गुड़ी पड़वा का महत्व
भारत के अलग-अलग प्रांतों में नव वर्ष को अलग-अलग तिथियों एवं विधि के अनुसार मनाया जाता है। यह सभी तिथियां मार्च या अप्रैल के महीने में ही आती है। नव वर्ष की इन सभी तिथियों को सभी प्रांत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। परंतु पूरा देश नववर्ष की शुरुआत चैत्र महीने से ही मानता है। गुड़ी पड़वा, होला, युगादि, उगाड़ी, कश्मीरी नवरेह, वैशाखी, विशु, चित्रैय तिरुविजा, चेटीचंड आदि इन सब की तिथि नव वर्ष के आस पास ही आती है। बता दें कि Gudi Padwa 2022 को मराठी नूतन वर्ष के नाम से भी जाना जाता हैं।
विक्रम संवत में नए वर्ष का आरंभ चंद्रमा के चैत्र महीने के दिन से होता है। इस दिन ब्रह्मपुराण के अनुसार ब्रह्मा ने पूरी सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन सतयुग की शुरुआत भी हुई थी। इसके अलावा कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने भी इसी दिन मत्स्य अवतार धारण किया था। नवरात्रि की शुरुआत एवं भगवान राम का राज्य अभिषेक और पूरे अयोध्या नगर में विजय पताका भी इसी दिन फहराया गया था। यही कारण है कि गुड़ी पड़वा का महत्व पूरे भारतवर्ष में बहुत अधिक है।
ज्योतिषियों के अनुसार चैत्र पंचांग का आरंभ भी इसी समय माना जाता है क्योंकि चैत्र महीने की पूर्णिमा का अंत चित्रा नक्षत्र में होने से चैत्र महीने को नववर्ष के पहले दिन के रूप में माना जाता है एवं इसी दिन से दिन रात की अपेक्षा अधिक बढ़ा होने लगता है। इस समय बर्तनों पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं। लोगों की मान्यता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन सूर्य देव की आराधना को अधिक महत्व दिया जाता है। इसके अलावा सुंदरकांड, राम रक्षा स्त्रोत, देवी भगवती के मंत्रों का पाठ एवं जाप भी होता है। सभी किसान रवि फसल की कटाई करके उसे फिर से बुवाई करने का उत्साह मनाते हैं एवं अच्छी फसल की कामना करते हुए वे इसी दिन अपने खेतों को जोतते हैं।
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FAQs :
प्रश्न : Gudi Padwa 2022 कैसे मनाया जाता हैं?
उत्तर : Gudi Padwa 2022 के अंतर्गत रात्रि के अंधेरे में नववर्ष का स्वागत नहीं किया जाता है बल्कि सूरज की पहली किरण के साथ नववर्ष मनाया जाता है।
प्रश्न : Gudi Padwa 2022 में किस तिथि को मनाया जायेगा?
उत्तर : 2022 में Gudi Padwa का त्योहार दिन शनिवार, 2 अप्रैल को मनाया जाएगा।
प्रश्न : Gudi Padwa में कौन- कौन से पकवान बनते हैं?
उत्तर : Gudi Padwa में पूरन पोली यानी मिठी रोटी, गुड़ और नीम, नमक और इमली के साथ बनाया जाता हैं